Bihar Assembly Elections 2025: महिला वोट का नया राजनीतिक लहर
Bihar Assembly Elections 2025: के नतीजों ने राज्य की राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल दिया है. इस चुनाव का सबसे बड़ा निष्कर्ष यह रहा कि महिलाओं की भागीदारी और उनकी निर्णायक पसंद (decisive choice) ने सत्ता का रुख तय कर दिया. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत सीधे बैंक खातों में भेजी गई दस हजार रुपये की राशि ने न केवल चुनावी माहौल को प्रभावित किया, बल्कि वर्षों से गढ़े जा रहे सामाजिक समीकरणों को भी पीछे छोड़ दिया. विपक्ष ने इसे चुनावी चारा बताया, लेकिन महिलाओं ने इस पहल को सशक्तिकरण के अवसर के रूप में देखा और अपने भरोसे को वोट में बदलकर एक नई राजनीतिक धारा का निर्माण किया.

महिला मतदान ने बदला चुनावी समीकरण
पहली बार बिहार में महिला मतदाताओं की सक्रियता इस स्तर पर देखी गई. जहां पुरुषों का मतदान प्रतिशत करीब 63 के आसपास रहा, वहीं महिलाओं की भागीदारी लगभग 72 प्रतिशत तक पहुंच गई. यह अंतर केवल आंकड़ों (statistics) का विषय नहीं था, बल्कि इसने यह स्पष्ट कर दिया कि महिला वोट अब किसी पार्टी के पारंपरिक सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र और निर्णायक समूह बन चुका है. इस बढ़त ने चुनाव परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाई और सत्ता का पलड़ा पूरी तरह एक गठबंधन की ओर झुका दिया.
Direct Benefit Transfer ने बनाया वास्तविक भरोसा
चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई वित्तीय सहायता ने एक करोड़ से अधिक महिलाओं तक सीधा लाभ पहुंचाया. यह राशि केवल आर्थिक मदद नहीं थी, बल्कि उन महिलाओं के लिए आत्मसम्मान (self esteem) का स्रोत बनी, जो लंबे समय से आर्थिक रूप से परिवार पर निर्भर रही थीं. विपक्ष द्वारा वसूली के डर का माहौल बनाने की कोशिशों के बावजूद राज्य नेतृत्व की स्पष्ट घोषणा कि इस राशि को वापस नहीं लिया जाएगा, महिलाओं में विश्वास को और मजबूत कर गई. यही भरोसा मतदान केंद्रों पर भारी संख्या में दिखाई दिया.
पिछले वर्षों की Women-Centric Policies का संगठित प्रभाव
दस हजार की सहायता भले ही चुनावी चर्चा का केंद्र रही हो, लेकिन इसके पीछे पिछले वर्षों में महिलाओं को सशक्त बनाने की कई नीतियों का भी गहरा प्रभाव मौजूद था. आशा और जीविका समूह की महिलाओं का बढ़ा मानदेय, बिजली राहत योजनाएं, पेंशन सुधार, पुलिस सेवा में 35 प्रतिशत आरक्षण, पंचायतों में आरक्षण (Reservation) और शराबबंदी—इन सभी ने महिलाओं के भीतर एक स्थायी भरोसा विकसित किया. इसी वजह से वे जिले, जहां पहले महागठबंधन का प्रभाव रहा था, इस बार नए राजनीतिक परिणाम लेकर सामने आए.
जाति आधारित राजनीति से अलग उभरी स्वतंत्र महिला शक्ति
बिहार की राजनीति लंबे समय से जातीय गणित पर आधारित रही है, लेकिन इस चुनाव ने यह धारणा तोड़ दी कि जाति ही चुनावी परिणाम का अंतिम मापदंड (final criteria) है. महिलाओं ने जातीय सीमाओं से ऊपर उठकर अपना निर्णय दिया और यह संकेत दे दिया कि महिला वोट अपनी स्वतंत्र पहचान बना चुका है. यह बदलाव केवल बिहार तक सीमित नहीं है. मध्य प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में पहले भी इसी तरह की योजनाओं के प्रभाव से Women Vote Wave देखा जा चुका है.
वादा और क्रियान्वयन के फर्क की दिल्ली से मिली सीख
दिल्ली के उदाहरण (Example) ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल घोषणा करने से महिला समर्थन नहीं मिलता. वहां घोषित योजना लागू न होने की स्थिति में महिला विश्वास कमजोर पड़ा. इसके मुकाबले बिहार में समय पर लाभ मिलने से चुनावी प्रभाव पूरी तरह सकारात्मक रहा.
बिहार में मजबूत हुआ नया Social Contract
महिला मतदाताओं के अभूतपूर्व (unprecedented) समर्थन के कारण सत्ता विरोधी भावना भी कमजोर पड़ गई और सत्ताधारी गठबंधन को बड़ी जीत मिली. महिला रोजगार योजना ने बिहार की राजनीति में एक नए प्रकार का सामाजिक अनुबंध स्थापित कर दिया है, जिसमें महिलाओं को न केवल मतदाता के रूप में, बल्कि नीतियों के केंद्र में रखा गया है.



