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PSPCL: अब कर्मचारियों को मिलेगा मेहनत का पूरा हक, 23 साल सेवा देने वालों को मिली इन्क्रीमेंट और 12% ब्याज की सौगात

PSPCL: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है. हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि उन्हें 23 साल की रेगुलर सर्विस पूरी होने पर प्रमोशन में इंक्रीमेंट दिया जाए. कोर्ट ने 12 परसेंट ब्याज के साथ बकाया रकम का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है.

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जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार की एकल पीठ ने एक बार में 128 याचिकाओं का फैसला सुना दिया. इन याचिकाओं में सरकारी कर्मचारियों ने एक जैसे लाभों की मांग की थी. ये लाभ पहले से चल रहे मामलों से जुड़े थे. कोर्ट ने साफ कहा कि यह पूरा मुद्दा पहले ही कई पुराने फैसलों से हल हो चुका है. विभागीय सर्कुलरों (Departmental circulars) ने भी इसकी पुष्टि की है. फिर भी दोबारा ऐसे केस दायर करना कोर्ट के समय की बर्बादी है. जजों को नई समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए. पुराने हल वाले मुद्दों पर बार-बार आने से न्याय प्रक्रिया धीमी हो जाती है.

यह दोहराव प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है. अधिकारी पहले फैसलों को लागू क्यों नहीं करते? इससे साफ होता है कि सिस्टम में कमजोरी है. पंजाब विवाद समाधान और मुकदमेबाजी नीति (Litigation Policy), 2020 का लक्ष्य यही था. यह नीति झगड़ों को जल्दी सुलझाने और कोर्ट के बोझ को कम करने के लिए बनी है. बार-बार केस करने से नीति का उद्देश्य विफल हो जाता है. कर्मचारियों को लाभ मिलने में देरी होती है. कोर्ट का समय बेकार चला जाता है.

एक उदाहरण लें तो पंजाब में कई विभागों के कर्मचारी समान भत्तों के लिए याचिका देते रहते हैं. लेकिन उच्च न्यायालय (High Court) के पुराने फैसले सबके लिए लागू होते हैं. सर्कुलर जारी होने के बाद भी अमल न होना बड़ी समस्या है. कोर्ट ने चेतावनी दी है कि ऐसे मामलों को दोहराने से बचें. इससे प्रशासन को सुधारना पड़ेगा. नीति 2020 ने मुकदमों को घटाने का लक्ष्य रखा था. अब तक कई विभागों ने इसे अपनाया है. लेकिन यह घटना दिखाती है कि और प्रयास चाहिए. जस्टिस बरार का फैसला एक सबक है. यह सबको सोचने पर मजबूर करता है.

कोर्ट ने नई बनी एम्पावर्ड कमेटी (Empowered Committee) को निर्देश दिया कि वह इस पॉलिसी के तहत सभी पेंडिंग और भविष्य के दावों का समय पर निपटारा सुनिश्चित करे, जिससे ऐसे ही मामलों में बार-बार याचिकाएं दायर करने की ज़रूरत खत्म हो जाए.

सतीश कुमार जागोता और अन्य द्वारा दायर याचिका में 23 साल की सर्विस पूरी होने पर तीसरे इंक्रीमेंट में बढ़ोतरी और 12% ब्याज के साथ बकाया रकम की मांग की गई थी. जस्टिस बरार ने कहा कि यह विवाद ओम प्रकाश दुआ बनाम पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (2015) में पहले ही सुलझाया जा चुका है. उस फैसले में, कोर्ट ने 23 अप्रैल, 1990, 28 जुलाई, 2000 और 18 नवंबर, 2011 के सर्कुलर के आधार पर राहत दी थी.

रद्द हुई PSPCL की दलीलें 

PSPCL की दलीलों को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह कहना गलत है कि ज़्यादा पे स्केल वाले कर्मचारी इंक्रीमेंट के हकदार नहीं हैं. 2007 के सरकारी स्पष्टीकरण और 1999 के बोर्ड के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि ऐसे कर्मचारियों को भी यह फायदा मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि डिपार्टमेंटल परीक्षा की ज़रूरतें 2010 में हटा दी गई थीं और 2018 में पूरी तरह से खत्म कर दी गई थीं. इसलिए, PSPCL की दलील में कोई दम नहीं है.

 

 

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