Anil Ambani के सिर पर तांडव कर रही है ईडी, कुर्क हुई रिलायंस ग्रुप की 3000 करोड़ की संपत्तियां
Anil Ambani: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उद्योगपति अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले रिलायंस समूह से जुड़ी लगभग ₹3,000 करोड़ की संपत्ति अस्थायी रूप से कुर्क की है. एजेंसी ने यह कार्रवाई ऋण धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में की है. रविवार को मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह कुर्की धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जारी जांच का हिस्सा है. ईडी ने कहा है कि जल्द ही इस कार्रवाई से संबंधित विस्तृत बयान जारी किया जाएगा, जिसमें कुर्क की गई संपत्तियों का पूरा ब्यौरा साझा किया जाएगा.

सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई पिछले कुछ महीनों से चल रही वित्तीय अनियमितताओं की जांच के दौरान की गई है, जो अनिल अंबानी और उनके समूह की विभिन्न कंपनियों से जुड़ी हुई है. इन कंपनियों में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस कम्युनिकेशंस, और रिलायंस पावर जैसी प्रमुख इकाइयाँ शामिल हैं. एजेंसी को संदेह है कि इन कंपनियों ने बैंकों से लिए गए ऋणों के उपयोग में अनियमितताएँ कीं और धन को अन्य संस्थाओं के माध्यम से इधर-उधर स्थानांतरित किया गया.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, एजेंसी की कार्रवाई के बाद मीडिया ने रिलायंस समूह के प्रवक्ता से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन समाचार लिखे जाने तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली. हालांकि, कंपनी ने पहले किसी भी गड़बड़ी से साफ इनकार किया है.
1 अक्टूबर को दिए गए एक बयान में, समूह ने कहा था, “₹17,000 करोड़ की कथित राशि और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर से इसका संबंध पूरी तरह निराधार और काल्पनिक है. इन आरोपों का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है. रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर अपनी व्यावसायिक योजनाओं को पूरी पारदर्शिता के साथ लागू कर रही है और कंपनी इस समय बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से पूरी तरह ऋण मुक्त है.” कंपनी ने यह भी बताया कि जून 2025 तक उसकी कुल परिसंपत्तियाँ ₹14,883 करोड़ के स्तर पर हैं.
Ambani पर ₹17,000 करोड़ की अनियमितताओं के आरोप
ईडी की जाँच उसी व्यापक वित्तीय घोटाले से जुड़ी है, जिसमें अनिल अंबानी के समूह की विभिन्न कंपनियों पर लगभग ₹17,000 करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं. एजेंसी का कहना है कि कई बैंकों से लिए गए ऋणों का उपयोग निर्धारित परियोजनाओं में न होकर अन्य निवेशों और संबंधित कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया गया. इसी सिलसिले में इस साल अगस्त में अनिल अंबानी (Anil Ambani)से ईडी के अधिकारियों ने पूछताछ भी की थी.
सिर्फ ईडी ही नहीं, केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) भी इन आरोपों की समानांतर जाँच कर रहा है. सीबीआई ने आरोप लगाया है कि रिलायंस समूह की कुछ कंपनियों, यस बैंक, और बैंक के तत्कालीन सीईओ राणा कपूर के परिजनों के स्वामित्व वाली संस्थाओं के बीच जटिल और संदिग्ध वित्तीय लेन-देन हुए. एजेंसी ने इन मामलों में पहले ही आरोपपत्र (Chargesheet) दायर कर दिया है. सीबीआई के अनुसार, यस बैंक से रिलायंस समूह की कंपनियों को दिए गए ऋणों में गड़बड़ी हुई, और बदले में निजी लाभ प्राप्त किए गए.
पृष्ठभूमि और संभावित असर
अनिल अंबानी, जो कभी भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में से एक का नेतृत्व कर चुके हैं, पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक दबाव और कानूनी विवादों का सामना कर रहे हैं. उनकी कई कंपनियाँ कर्ज़ के बोझ और बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के कारण वित्तीय संकट (Financial crisis) में आ गई थीं.
विशेषज्ञों का मानना है कि ईडी की यह हालिया कार्रवाई समूह की साख पर और असर डाल सकती है, हालांकि अदालतों में मामले के अंतिम नतीजे आने तक किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी.
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता से जुड़े व्यापक प्रश्न भी उठाता है. बड़े उद्योग समूहों के ऋण प्रबंधन, बैंकों की ऋण मंज़ूरी प्रक्रिया (Loan Approval Process) और नियामक निगरानी पर अब फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं.
ईडी ने संकेत दिया है कि वह आने वाले हफ्तों में और भी संपत्तियों की कुर्की कर सकती है तथा संबंधित कंपनियों के वित्तीय रिकॉर्ड की विस्तृत फॉरेंसिक जांच (forensic investigation) कर रही है. एजेंसी के अधिकारियों ने कहा कि “हमारे पास पर्याप्त डिजिटल और दस्तावेजी सबूत हैं, जिनके आधार पर कार्रवाई आगे बढ़ाई जा रही है.”
यदि जाँच में वित्तीय अनियमितताएँ (Loan Approval Process) साबित होती हैं, तो यह देश के कॉर्पोरेट इतिहास में एक और बड़ा मनी लॉन्ड्रिंग केस बन सकता है.



